MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

खेतिहर वर्ग और सामाजिक गतिशीलता

अंग्रेज औपनिवेशिक राज से भारत को आजादी दिलाने के संग्राम में विभिन्न सामाजिक वर्गों ने योगदान दिया। किसानों ने अपने वर्ग शत्रु को पहचाना। उन्होंने अपने दो शोषकोंविदेशी शासकों और स्थानीय जमींदार और महाजनों के खिलाफ संघर्ष किया। किसानों और खेतिहर मजदूरों का संघर्ष देहातों के अर्धसामंती और पूँजीवादी शोषण और दमन का खात्मा करने के लिए आजादी के बाद भी चलता रहा।

भूमि सुधार और वर्गीय ढांचे में बदलाव

किसानों के संघर्ष से प्रेरणा लेकर, भारत में आजादी के बाद भूमि सुधार के कई उपाय किये गये। भूमि सुधार लोगों का जीवन स्तर सुधारने की दृष्टि से सामंती कृषि ढांचे को तोड़ने, कृषि उत्पादनों में बढ़ोत्तरी करने और कृषि को गतिशील बनाने के लिए आवश्यक थे।

भूमि सुधार का पहला उपाय था— जमींदारी व्यवस्था का उन्मूलन, जिसका लक्ष्य असली जोतदार न होकर केवल मालगुजारी की वसूली में लगे होने वाले जंमींदारों और अन्यों के बिचौलियों हितों को खत्म करके किसानों को राज्य के साथ सीधे संबंध में लाना था। दूसरे, काश्तकारी की सुरक्षा किसानों के हित में करना और काश्तकारों के लिए मालिकाना अधिकार हासिल करने को सुगम बनाना। तीसरे, खेती योग्य अतिरिक्त भूमि को बड़े भूस्वामियों या जमींदारों से लेकर उन्हें भूमिहीन खेतीहर मजदूरों और सीमान्त (मार्जिनल ) किसानों में बांटने के उद्देश्य से पारिवारिक काश्तकारी पर सीमा बांध दी गयी। लेकिन व्यक्तिगत खेती के लिए भूमि को अपने पास ही रखने के प्रावधान का इस्तेमाल कर देहाती जमींदारों और दूसरे बिचौलियों ने किसानों की जमीन हथिया ली। इसके परिणामस्वरूप काश्तकारों, विशेष तौर पर छोटे काश्तकारों, की बेदखली हो गयी। लेकिन फिर भी, शहरी भूस्वामियों की अनुपस्थिति जमींदारी बहुत हद तक कम हो गयी है और किसानों के एकवर्ग ने भूमि का स्वामित्व ले लिया है।

जमीन का बंटवारा करके और उन्हें पारिवारिक सदस्यों रिश्तेदारों और मित्रों के नाम स्थानान्तरित करके या अतिरिक्त भूमि को बेच कर जमींदार, काश्तकारी पर लगी सीमा संबंधी नियमों से बच निकले हैं। इसका नतीजा हुआ कि जमींदारों और धनी किसानों के हाथों में जमीन के संकेन्द्रित होने पर अधिक असर नहीं पड़ा है।

डेनियल थॉर्नर ने तीन प्रमुख खेतिहर वर्गों की शिनाख्त की है। वह उन्हें क्रमश: मालिक, किसान और मजदूर कहते हैं। मालिक से उसका आशय उस परिवार से है जिनकी खेतिहर आय का स्रोत प्रमुख रूप से (आवश्यक नहीं कि यह एक मात्र स्रोत हो ) जमीन में श्रेष्ठ स्वामित्व अधिकारों में होता है, जो किराये के रूप में होते हैं। इस वर्ग के लोग मजदूरों को किराये पर लेकर उनसे अपनी निगरानी में खेती करवाते हैं और खुद अपने हाथों से खेतों में काम नहीं करते। किसान या काम करने वाले किसान छोटे भूस्वामी या काश्तकार कहलाते हैं जिनकी निश्चित सुरक्षा विभिन्न अंशों में होती है और मालिक की अपेक्षा उनके जमीन के अधिकार निम्न श्रेणी के होते हैं। वे अधिकतर अपने ही श्रम पर निर्भर करते हैं और अपनी जमीनों से ही गुजारा चलाते हैं। मजदूर वे होते हैं जो दिहाड़ी या मेहनताने के रूप में अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं, यह मेहनताना रुपयों पैसों की या और किसी सूरत में भी हो सकती है। इस श्रेणी में लावनी करने (फसल काटने वाले) और स्वेच्छा से काश्तकार बने निचली श्रेणी के लोग आते हैं।

योगेन्द्र सिंह के अनुसार, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान या आजादी के बाद की भूमि सुधार की विचारधारा और भूमि सुधारों के लिए किये गये वास्तविक उपायों में काफी अंतर है। धनी मध्यम स्तर के किसानों का एक नया वर्ग बन गया हैं। धनी और निर्धन किसानों के बीच आर्थिक असमानताओं में बढ़ोत्तरी हुई है। खेतिहर वर्गीय संरचना में इन अंतर्विरोधों के परिणामस्वरूप भारत के गांवों में तनाव बढ़े हैं। अंतिम बात, ग्रामीण समुदाय में बदलाव की प्रक्रिया में बुर्जुआकरण (embourgeoisement) और सर्वहाराकरण (proletarianisation) की स्थिति साथ-साथ शामिल है।

सर्वहाराकरण और बुर्जुआकरण की अवधारणा का उपयोग खेतिहर वर्गीय स्तरीकरण में सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया गया है। सर्वहाराकरण से आशय उच्च वर्गों से निम्न वर्गों की ओर अधोगामी सामाजिक गतिशीलता से है। इसकी मिसाल छोटे और मार्जिनल किसानों में बार-बार देखी गयी है जो गरीबी के कारण अपनी जमीन बेच देते हैं और भूमिहीन खेतिहर सर्वहारा की कोटि में आ जाते हैं। इसके अलावा, पूर्व जमींदारों के कुछ परिवारों के हाथ से भी उनकी जमीन जाती रही है और वे शारीरिक श्रम करने लग गये। इस तथ्य को के० एल० शर्मा ने राजस्थान के छह गांवों के अपने अध्ययन में रेखांकित किया है।

बुर्जुआकरण से आशय सामाजिक गतिशीलता की उर्ध्वागामी प्रक्रिया से है जिसमें निम्न वर्ग के लोग अपनी वर्ग प्रस्थिति को बेहतर करके उच्च वर्ग में आ जाते हैं। इस प्रक्रिया को सर्वहाराकरण की प्रक्रिया का विलोम या उल्टा माना जा सकता है। इस प्रक्रिया में, निम्नवर्ग के व्यक्ति या परिवार आर्थिक प्रस्थिति, सामाजिक प्रतिष्ठा और शक्ति के स्तर में ऊँचे उठ जाते हैं और उच्च वर्ग में प्रवेश कर जाते हैं।

हरित क्रान्ति का प्रभाव

हरित क्रान्ति की नीति का लक्ष्य प्रौद्योगिक बदलावों के जरिये कृषि उत्पादन को बढ़ावा था, जबकि भूमि सुधार के उपायों का उद्देश्य उन्हीं लक्ष्यों को कृषि क्षेत्र में समानतावादी आधार पर संरचनात्मक बदलाव लाकर प्राप्त करना था। इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हरित क्रान्ति के लाभ मुख्य तौर पर जमींदारों और धनी किसानों व बड़े भूस्वामियों के हाथ लगे।

इस शताब्दी के सातवें दशक में, डेनियल थॉर्नर ने शहरी आधार के "सज्जने. किसानों" का देहातों में कुछ हरित क्रान्ति के क्षेत्रों की ओर भागने की स्थिति को रेखांकित किया है। इस तरह के किसानों में व्यापारी, व्यावसायिक लोग, सेवानिवृत्त सैनिक अधिकारी और सरकारी अधिकारी शामिल थे जिन्होंने जमीन खरीद कर कृषि उत्पादनों में पैसा लगाया। वास्तव में, इन 'प्रगतिशील किसानों" की यह पूरी कार्यवाही एक सामंतवादी रियायत से कम और व्यापारिक उद्यम से ज्यादा मेल खाती थी।

खेतिहर संबंधों के अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में खेती के बहुत लाभदायक होने के कारण बड़े जमींदारों ने काश्तकारों को बेदखल करके और बटाईदारी खत्म करके जमीन को अपने लिये रख लिया। इसके फलस्वरूप कास्तकारों की भूमिहीन सर्वहारा वर्ग की ओर अद्योगामी गतिशीलता की स्थिति बनी।

तमिलनाडु के अध्ययन में कैंथलीन गफ ने देखा कि मुख्य तौर पर खेतिहर मजदूर वाले अर्ध सर्वहारा पूँजीवादी विकास के साथ और भी सर्वहारा हो गये थे। उनका अपने उपकरणों, पट्टे की भूमि, वित्तीय सहायता वाले भू-भागों, सामान्य जमीनों, कारखानों, या रोजी रोटी की दूसरे माध्यमों पर कम कब्जा रह गया था। उनमें से कुछ कम काश्तकार, बंधुआ मजदूर या दस्तकार थे जो गांव के प्रभुत्वशाली वर्ग की सेवा करते थे। कई और खेतिहर मजदूर थे जो कम से कम आंशिक तौर पर नकद दिहाड़ी पर निर्भर करते थे।

उत्सा पटनायक ने विभिन्न खेतिहर वर्गों की शिनाख्त की है ये हैं जमींदार और मजदूर और धनी मध्यम और निर्धन किसान। जमींदार से भिन्न, एक धनी किसान खेती में कुछ शारीरिक श्रम भी कर लेता है। मध्यम किसान मुख्य तौर पर स्वरोजगार वाले होते हैं, जो परिवार के श्रम का सदुपयोग करते हैं। निर्धन किसान अपने आपको किराये पर उठाने पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं क्योंकि उनके पास रोजी-रोटी कमाने लायक अत्यधिक भूमि नहीं होती।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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